सब की चलती है राजनीती
सभी शासन के है भूके
एक दूसरे को गिराने की लिए है रुके
पैसे की है किम्मत
बस चलती दौलत की हुकूमत
भ्रष्टाचार है इनका जड़
जिसका नही है कोइ तोड़
अगर होना हो परिक्षे मैं पास
तो दिखा दो इनको हरी घास
अगर चाहिए नौकरी
बस दे दो इनको पैसो की टोकरी
अपराधी को अगर करना है रिहा
तो पैसे बनाते है इनकी दवा
सभी बनाना चाहते है अपनी सरकार
सभी जताना चाहते है अपना अधिकार
हाथ जोड़कर नेता है आते
और कई कसमे वाडे है करते
पर जब मिलाती है उन्हें कुर्सी
तो होती है शुरू इनकी चाप्रुसी
चाँद पैसो के लिए
दंगा फसाद है ये करते
और देते है कई घाव
जो पैदा करता है तनाव
भूल जाता है भाई, भाई को
और गिरते है लाशों के देर कई
भ्रष्टाचारी लोगों की उंगलियाँ डूबी रहती घी में
जब आम इंसान जीता कठिनाई में
न जाने कब खत्म होगा भ्रष्टाचार
क्या कभी होगा सभी लोगों में प्यार?
hey nice poem, but lots of spelling mistakes there :)
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